Saturday, February 22, 2020

DOHAS OF KABIR DAS - I

Global Organization for Divinity, USA
ते दिन गये अकारथी, संगत भई संत
प्रेम बिना पशु जीवना, भक्ति बिना भगवंत 201
तीर तुपक से जो लड़े, सो तो शूर होय
माया तजि भक्ति करे, सूर कहावै सोय 202
तन को जोगी सब करे, मन को बिरला कोय
सहजै सब विधि पाइये, जो मन जोगी होय 203
तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे नसूर
तब लग जीव जग कर्मवश, जब लग ज्ञान ना पूर 204
दुर्लभ मानुष जनम है, देह बारम्बार
तरुवर ज्यों पत्ती झड़े, बहुरि लागे डार 205
दस द्वारे का पींजरा, तामें पंछी मौन
रहे को अचरज भयौ, गये अचम्भा कौन 206
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय
माली सीचें सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय 207
न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल जाय
मीन सदा जल में रहै, धोये बास जाय 208
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय
एक पहर भी नाम बीन, मुक्ति कैसे होय 209
पोथी पढ़-पढ़ जग मुआ, पंडित भया कोय
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंड़ित होय 210
पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात
देखत ही छिप जाएगा, ज्यों सारा परभात 211
पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार 212
पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बनराय
अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेंगे जाय 213
प्रेमभाव एक चाहिए, भेष अनेक बजाय
चाहे घर में बास कर, चाहे बन मे जाय 214
बन्धे को बँनधा मिले, छूटे कौन उपाय
कर संगति निरबन्ध की, पल में लेय छुड़ाय 215
बूँद पड़ी जो समुद्र में, ताहि जाने सब कोय
समुद्र समाना बूँद में, बूझै बिरला कोय 216
बाहर क्या दिखराइये, अन्तर जपिए राम
कहा काज संसार से, तुझे धनी से काम 217
बानी से पहचानिए, साम चोर की घात
अन्दर की करनी से सब, निकले मुँह की बात 218
बड़ा हुआ सो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पँछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर 219
मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय
बार-बार के मुड़ते, भेड़ बैकुण्ठ जाय 220
माया तो ठगनी बनी, ठगत फिरे सब देश
जा ठग ने ठगनी ठगो, ता ठग को आदेश 221
भज दीना कहूँ और ही, तन साधुन के संग
कहैं कबीर कारी गजी, कैसे लागे रंग 222
माया छाया एक सी, बिरला जाने कोय
भागत के पीछे लगे, सन्मुख भागे सोय 223
मथुरा भावै द्वारिका, भावे जो जगन्नाथ
साधु संग हरि भजन बिनु, कछु आवे हाथ 224
माली आवत देख के, कलियान करी पुकार
फूल-फूल चुन लिए, काल हमारी बार 225
मैं रोऊँ सब जगत् को, मोको रोवे कोय
मोको रोवे सोचना, जो शब्द बोय की होय 226
ये तो घर है प्रेम का, खाला का घर नाहिं
सीस उतारे भुँई धरे, तब बैठें घर माहिं 227
या दुनियाँ में कर, छाँड़ि देय तू ऐंठ
लेना हो सो लेइले, उठी जात है पैंठ 228
राम नाम चीन्हा नहीं, कीना पिंजर बास
नैन आवे नीदरौं, अलग आवे भास 229
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय
हीरा जन्म अनमोल था, कौंड़ी बदले जाए 230
राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय
जो सुख साधु सगं में, सो बैकुंठ होय 231
संगति सों सुख्या ऊपजे, कुसंगति सो दुख होय
कह कबीर तहँ जाइये, साधु संग जहँ होय 232
साहिब तेरी साहिबी, सब घट रही समाय
ज्यों मेहँदी के पात में, लाली रखी जाय 233
साँझ पड़े दिन बीतबै, चकवी दीन्ही रोय
चल चकवा वा देश को, जहाँ रैन नहिं होय 234
संह ही मे सत बाँटे, रोटी में ते टूक
कहे कबीर ता दास को, कबहुँ आवे चूक 235
साईं आगे साँच है, साईं साँच सुहाय
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट मुण्डाय 236
लकड़ी कहै लुहार की, तू मति जारे मोहिं
एक दिन ऐसा होयगा, मैं जारौंगी तोहि 237
हरिया जाने रुखड़ा, जो पानी का गेह
सूखा काठ जान ही, केतुउ बूड़ा मेह 238
ज्ञान रतन का जतनकर माटी का संसार
आय कबीर फिर गया, फीका है संसार 239
ॠद्धि सिद्धि माँगो नहीं, माँगो तुम पै येह
निसि दिन दरशन शाधु को, प्रभु कबीर कहुँ देह 240
क्षमा बड़े को उचित है, छोटे को उत्पात
कहा विष्णु का घटि गया, जो भुगु मारीलात 241
राम-नाम कै पटं तरै, देबे कौं कुछ नाहिं
क्या ले गुर संतोषिए, हौंस रही मन माहिं 242
बलिहारी गुर आपणौ, घौंहाड़ी कै बार
जिनि भानिष तैं देवता, करत लागी बार 243
ना गुरु मिल्या सिष भया, लालच खेल्या डाव
दुन्यू बूड़े धार में, चढ़ि पाथर की नाव 244
सतगुर हम सूं रीझि करि, एक कह्मा कर संग
बरस्या बादल प्रेम का, भींजि गया अब अंग 245
कबीर सतगुर ना मिल्या, रही अधूरी सीष
स्वाँग जती का पहरि करि, धरि-धरि माँगे भीष 246
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान
सीस दिये जो गुरु मिलै, तो भी सस्ता जान 247
तू तू करता तू भया, मुझ में रही हूँ
वारी फेरी बलि गई, जित देखौं तित तू 248
राम पियारा छांड़ि करि, करै आन का जाप
बेस्या केरा पूतं ज्यूं, कहै कौन सू बाप 249
कबीरा प्रेम चषिया, चषि लिया साव
सूने घर का पांहुणां, ज्यूं आया त्यूं जाव 250
कबीरा राम रिझाइ लै, मुखि अमृत गुण गाइ
फूटा नग ज्यूं जोड़ि मन, संधे संधि मिलाइ 251
लंबा मारग, दूरिधर, विकट पंथ, बहुमार
कहौ संतो, क्यूं पाइये, दुर्लभ हरि-दीदार 252
बिरह-भुवगम तन बसै मंत्र लागै कोइ
राम-बियोगी ना जिवै जिवै तो बौरा होइ 253
यह तन जालों मसि करों, लिखों राम का नाउं
लेखणि करूं करंक की, लिखी-लिखी राम पठाउं 254
अंदेसड़ा भाजिसी, सदैसो कहियां
के हरि आयां भाजिसी, कैहरि ही पास गयां 255
इस तन का दीवा करौ, बाती मेल्यूं जीवउं
लोही सींचो तेल ज्यूं, कब मुख देख पठिउं 256
अंषड़ियां झाईं पड़ी, पंथ निहारि-निहारि
जीभड़ियाँ छाला पड़या, राम पुकारि-पुकारि 257
सब रग तंत रबाब तन, बिरह बजावै नित्त
और कोई सुणि सकै, कै साईं के चित्त 258
जो रोऊँ तो बल घटै, हँसो तो राम रिसाइ
मन ही माहिं बिसूरणा, ज्यूँ घुँण काठहिं खाइ 259
कबीर हँसणाँ दूरि करि, करि रोवण सौ चित्त
बिन रोयां क्यूं पाइये, प्रेम पियारा मित्व 260
सुखिया सब संसार है, खावै और सोवे
दुखिया दास कबीर है, जागै अरु रौवे 261
परबति परबति मैं फिरया, नैन गंवाए रोइ
सो बूटी पाऊँ नहीं, जातैं जीवनि होइ 262
पूत पियारौ पिता कौं, गौहनि लागो घाइ
लोभ-मिठाई हाथ दे, आपण गयो भुलाइ 263
हाँसी खैलो हरि मिलै, कौण सहै षरसान
काम क्रोध त्रिष्णं तजै, तोहि मिलै भगवान 264
जा कारणि में ढ़ूँढ़ती, सनमुख मिलिया आइ
धन मैली पिव ऊजला, लागि सकौं पाइ 265
पहुँचेंगे तब कहैगें, उमड़ैंगे उस ठांई
आजहूं बेरा समंद मैं, बोलि बिगू पैं काई 266
दीठा है तो कस कहूं, कह्मा को पतियाइ
हरि जैसा है तैसा रहो, तू हरिष-हरिष गुण गाइ 267
भारी कहौं तो बहुडरौं, हलका कहूं तौ झूठ
मैं का जाणी राम कूं नैनूं कबहूं दीठ 268
कबीर एक जाण्यां, तो बहु जाण्यां क्या होइ
एक तै सब होत है, सब तैं एक होइ 269
कबीर रेख स्यंदूर की, काजल दिया जाइ
नैनूं रमैया रमि रह्मा, दूजा कहाँ समाइ 270
कबीर कूता राम का, मुतिया मेरा नाउं
गले राम की जेवड़ी, जित खैंचे तित जाउं 271
कबीर कलिजुग आइ करि, कीये बहुत जो भीत
जिन दिल बांध्या एक सूं, ते सुख सोवै निचींत 272
जब लग भगहित सकामता, सब लग निर्फल सेव
कहै कबीर वै क्यूँ मिलै निह्कामी निज देव 273
पतिबरता मैली भली, गले कांच को पोत
सब सखियन में यों दिपै, ज्यों रवि ससि को जोत 274
कामी अभी भावई, विष ही कौं ले सोधि
कुबुध्दि जीव की, भावै स्यंभ रहौ प्रमोथि 275
भगति बिगाड़ी कामियां, इन्द्री केरै स्वादि
हीरा खोया हाथ थैं, जनम गँवाया बादि 276
परनारी का राचणौ, जिसकी लहसण की खानि
खूणैं बेसिर खाइय, परगट होइ दिवानि 277
परनारी राता फिरैं, चोरी बिढ़िता खाहिं
दिवस चारि सरसा रहै, अति समूला जाहिं 288
ग्यानी मूल गँवाइया, आपण भये करना
ताथैं संसारी भला, मन मैं रहै डरना 289
कामी लज्जा ना करै, माहें अहिलाद
नींद माँगै साँथरा, भूख माँगे स्वाद 290
कलि का स्वामी लोभिया, पीतलि घरी खटाइ
राज-दुबारा यौं फिरै, ज्यँ हरिहाई गाइ 291
स्वामी हूवा सीतका, पैलाकार पचास
राम-नाम काठें रह्मा, करै सिषां की आंस 292
इहि उदर के कारणे, जग पाच्यो निस जाम
स्वामी-पणौ जो सिरि चढ़यो, सिर यो एको काम 293
ब्राह्म्ण गुरु जगत् का, साधू का गुरु नाहिं
उरझि-पुरझि करि भरि रह्मा, चारिउं बेदा मांहि 294
कबीर कलि खोटी भई, मुनियर मिलै कोइ
लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ 295
कलि का स्वमी लोभिया, मनसा घरी बधाई
दैंहि पईसा ब्याज़ को, लेखां करता जाई 296
कबीर इस संसार कौ, समझाऊँ कै बार
पूँछ जो पकड़ै भेड़ की उतर या चाहे पार 297
तीरथ करि-करि जग मुवा, डूंधै पाणी न्हाइ
रामहि राम जपतंडां, काल घसीटया जाइ 298
चतुराई सूवै पढ़ी, सोइ पंजर मांहि
फिरि प्रमोधै आन कौं, आपण समझे नाहिं 299
कबीर मन फूल्या फिरै, करता हूँ मैं घ्रंम
कोटि क्रम सिरि ले चल्या, चेत देखै भ्रम 300
सबै रसाइण मैं क्रिया, हरि सा और कोई
तिल इक घर मैं संचरे, तौ सब तन कंचन होई 301
हरि-रस पीया जाणिये, जे कबहुँ जाइ खुमार
मैमता घूमत रहै, नाहि तन की सार 302
कबीर हरि-रस यौं पिया, बाकी रही थाकि
पाका कलस कुंभार का, बहुरि चढ़ई चाकि 303
कबीर भाठी कलाल की, बहुतक बैठे आई
सिर सौंपे सोई पिवै, नहीं तौ पिया जाई 304
त्रिक्षणा सींची ना बुझै, दिन दिन बधती जाइ
जवासा के रुष ज्यूं, घण मेहां कुमिलाइ 305
कबीर सो घन संचिये, जो आगे कू होइ
सीस चढ़ाये गाठ की जात देख्या कोइ 306
कबीर माया मोहिनी, जैसी मीठी खांड़
सतगुरु की कृपा भई, नहीं तौ करती भांड़ 307
कबीर माया पापरगी, फंध ले बैठी हाटि
सब जग तौ फंधै पड्या, गया कबीर काटि 308
कबीर जग की जो कहै, भौ जलि बूड़ै दास
पारब्रह्म पति छांड़ि करि, करै मानि की आस 309
बुगली नीर बिटालिया, सायर चढ़या कलंक
और पखेरू पी गये, हंस बौवे चंच 310
कबीर इस संसार का, झूठा माया मोह
जिहि धारि जिता बाधावणा, तिहीं तिता अंदोह 311
माया तजी तौ क्या भया, मानि तजि नही जाइ
मानि बड़े मुनियर मिले, मानि सबनि को खाइ 312
करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि करि तुंड
जाने-बूझै कुछ नहीं, यौं ही अंधा रुंड 313
कबीर पढ़ियो दूरि करि, पुस्तक देइ बहाइ
बावन आषिर सोधि करि, ररै मर्मे चित्त लाइ 314
मैं जाण्यूँ पाढ़िबो भलो, पाढ़िबा थे भलो जोग
राम-नाम सूं प्रीती करि, भल भल नींयो लोग 315
पद गाएं मन हरषियां, साषी कह्मां अनंद
सो तत नांव जाणियां, गल में पड़िया फंद 316
जैसी मुख तै नीकसै, तैसी चाले चाल
पार ब्रह्म नेड़ा रहै, पल में करै निहाल 317
काजी-मुल्ला भ्रमियां, चल्या युनीं कै साथ
दिल थे दीन बिसारियां, करद लई जब हाथ 318
प्रेम-प्रिति का चालना, पहिरि कबीरा नाच
तन-मन तापर वारहुँ, जो कोइ बौलौ सांच 319
सांच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप
जाके हिरदै में सांच है, ताके हिरदै हरि आप 320
खूब खांड है खीचड़ी, माहि ष्डयाँ टुक कून
देख पराई चूपड़ी, जी ललचावे कौन 321
साईं सेती चोरियाँ, चोरा सेती गुझ
जाणैंगा रे जीवएगा, मार पड़ैगी तुझ 322
तीरथ तो सब बेलड़ी, सब जग मेल्या छाय
कबीर मूल निकंदिया, कौण हलाहल खाय 323
जप-तप दीसैं थोथरा, तीरथ व्रत बेसास
सूवै सैंबल सेविया, यौ जग चल्या निरास 324
जेती देखौ आत्म, तेता सालिगराम
राधू प्रतषि देव है, नहीं पाथ सूँ काम 325
कबीर दुनिया देहुरै, सीत नवांवरग जाइ
हिरदा भीतर हरि बसै, तू ताहि सौ ल्यो लाइ 326
मन मथुरा दिल द्वारिका, काया कासी जाणि
दसवां द्वारा देहुरा, तामै जोति पिछिरिग 327
मेरे संगी दोइ जरग, एक वैष्णौ एक राम
वो है दाता मुक्ति का, वो सुमिरावै नाम 328
मथुरा जाउ भावे द्वारिका, भावै जाउ जगनाथ
साथ-संगति हरि-भागति बिन-कछु आवै हाथ 329
कबीर संगति साधु की, बेगि करीजै जाइ
दुर्मति दूरि बंबाइसी, देसी सुमति बताइ 330
उज्जवल देखि धीजिये, वग ज्यूं माडै ध्यान
धीर बौठि चपेटसी, यूँ ले बूडै ग्यान 331
जेता मीठा बोलरगा, तेता साधन जारिग
पहली था दिखाइ करि, उडै देसी आरिग 332
जानि बूझि सांचहिं तर्जे, करै झूठ सूँ नेहु
ताकि संगति राम जी, सुपिने ही पिनि देहु 333
कबीर तास मिलाइ, जास हियाली तू बसै
नहिंतर बेगि उठाइ, नित का गंजर को सहै 334
कबीरा बन-बन मे फिरा, कारणि आपणै राम
राम सरीखे जन मिले, तिन सारे सवेरे काम 335
कबीर मन पंषो भया, जहाँ मन वहाँ उड़ि जाय
जो जैसी संगति करै, सो तैसे फल खाइ 336
कबीरा खाई कोट कि, पानी पिवै कोई
जाइ मिलै जब गंग से, तब गंगोदक होइ 337
माषी गुड़ मैं गड़ि रही, पंख रही लपटाई
ताली पीटै सिरि घुनै, मीठै बोई माइ 338
मूरख संग कीजिये, लोहा जलि तिराइ
कदली-सीप-भुजगं मुख, एक बूंद तिहँ भाइ 339
हरिजन सेती रुसणा, संसारी सूँ हेत
ते णर कदे नीपजौ, ज्यूँ कालर का खेत 340
काजल केरी कोठड़ी, तैसी यहु संसार
बलिहारी ता दास की, पैसिर निकसण हार 341
पाणी हीतै पातला, धुवाँ ही तै झीण
पवनां बेगि उतावला, सो दोस्त कबीर कीन्ह 342
आसा का ईंधण करूँ, मनसा करूँ बिभूति
जोगी फेरी फिल करूँ, यौं बिनना वो सूति 343
कबीर मारू मन कूँ, टूक-टूक है जाइ
विव की क्यारी बोइ करि, लुणत कहा पछिताइ 353
कागद केरी नाव री, पाणी केरी गंग
कहै कबीर कैसे तिरूँ, पंच कुसंगी संग 354
मैं मन्ता मन मारि रे, घट ही माहैं घेरि
जबहीं चालै पीठि दे, अंकुस दै-दै फेरि 355
मनह मनोरथ छाँड़िये, तेरा किया होइ
पाणी में घीव नीकसै, तो रूखा खाइ कोइ 356
एक दिन ऐसा होएगा, सब सूँ पड़े बिछोइ
राजा राणा छत्रपति, सावधान किन होइ 357
कबीर नौबत आपणी, दिन-दस लेहू बजाइ
पुर पाटन, गली, बहुरि देखै आइ 358
जिनके नौबति बाजती, भैंगल बंधते बारि
एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि 359
कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ
इत के भये उत के, चलित भूल गँवाइ 360
बिन रखवाले बाहिरा, चिड़िया खाया खेत
आधा-परधा ऊबरै, चेति सकै तो चैति 361
कबीर कहा गरबियौ, काल कहै कर केस
ना जाणै कहाँ मारिसी, कै धरि के परदेस 362
नान्हा कातौ चित्त दे, महँगे मोल बिलाइ
गाहक राजा राम है, और नेडा आइ 363
उजला कपड़ा पहिरि करि, पान सुपारी खाहिं
एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं 364
कबीर केवल राम की, तू जिनि छाँड़ै ओट
घण-अहरनि बिचि लौह ज्यूँ, घणी सहै सिर चोट 365
मैं-मैं बड़ी बलाइ है सकै तो निकसौ भाजि
कब लग राखौ हे सखी, रुई लपेटी आगि 366
कबीर माला मन की, और संसारी भेष
माला पहरयां हरि मिलै, तौ अरहट कै गलि देखि 367
माला पहिरै मनभुषी, ताथै कछू होइ
मन माला को फैरता, जग उजियारा सोइ 368
कैसो कहा बिगाड़िया, जो मुंडै सौ बार
मन को काहे मूंडिये, जामे विषम-विकार 369
माला पहरयां कुछ नहीं, भगति आई हाथ
माथौ मूँछ मुंडाइ करि, चल्या जगत् के साथ 370
बैसनो भया तौ क्या भया, बूझा नहीं बबेक
छापा तिलक बनाइ करि, दगहया अनेक 371
स्वाँग पहरि सो रहा भया, खाया-पीया खूंदि
जिहि तेरी साधु नीकले, सो तो मेल्ही मूंदि 372
चतुराई हरि ना मिलै, बातां की बात
एक निस प्रेही निरधार का गाहक गोपीनाथ 373
एष ले बूढ़ी पृथमी, झूठे कुल की लार
अलष बिसारयो भेष में, बूड़े काली धार 374
कबीर हरि का भावता, झीणां पंजर
रैणि आवै नींदड़ी, अंगि चढ़ई मांस 375
सिंहों के लेहँड नहीं, हंसों की नहीं पाँत
लालों की नहि बोरियाँ, साध चलै जमात 376
गाँठी दाम बांधई, नहिं नारी सों नेह
कह कबीर ता साध की, हम चरनन की खेह 377
निरबैरी निहकामता, साईं सेती नेह
विषिया सूं न्यारा रहै, संतनि का अंग सह 378
जिहिं हिरदै हरि आइया, सो क्यूं छाना होइ
जतन-जतन करि दाबिये, तऊ उजाला सोइ 379
काम मिलावे राम कूं, जे कोई जाणै राखि
कबीर बिचारा क्या कहै, जाकि सुख्देव बोले साख 380
राम वियोगी तन बिकल, ताहि चीन्हे कोई
तंबोली के पान ज्यूं, दिन-दिन पीला होई 381
पावक रूपी राम है, घटि-घटि रह्या समाइ
चित चकमक लागै नहीं, ताथै घूवाँ है-है जाइ 382
फाटै दीदै में फिरौं, नजिर आवै कोई
जिहि घटि मेरा साँइयाँ, सो क्यूं छाना होई 383
हैवर गैवर सघन धन, छत्रपती की नारि
तास पटेतर ना तुलै, हरिजन की पनिहारि 384
जिहिं धरि साध पूजि, हरि की सेवा नाहिं
ते घर भड़धट सारषे, भूत बसै तिन माहिं 385
कबीर कुल तौ सोभला, जिहि कुल उपजै दास
जिहिं कुल दास उपजै, सो कुल आक-पलास 386
क्यूं नृप-नारी नींदिये, क्यूं पनिहारी कौ मान
वा माँग सँवारे पील कौ, या नित उठि सुमिरैराम 387
काबा फिर कासी भया, राम भया रे रहीम
मोट चून मैदा भया, बैठि कबीरा जीम 388
दुखिया भूखा दुख कौं, सुखिया सुख कौं झूरि
सदा अजंदी राम के, जिनि सुख-दुख गेल्हे दूरि 389
कबीर दुबिधा दूरि करि, एक अंग है लागि
यहु सीतल बहु तपति है, दोऊ कहिये आगि 390
कबीर का तू चिंतवै, का तेरा च्यंत्या होइ
अण्च्यंत्या हरिजी करै, जो तोहि च्यंत होइ 391
भूखा भूखा क्या करैं, कहा सुनावै लोग
भांडा घड़ि जिनि मुख यिका, सोई पूरण जोग 392
रचनाहार कूं चीन्हि लै, खैबे कूं कहा रोइ
दिल मंदि मैं पैसि करि, ताणि पछेवड़ा सोइ 393
कबीर सब जग हंडिया, मांदल कंधि चढ़ाइ
हरि बिन अपना कोउ नहीं, देखे ठोकि बनाइ 394
मांगण मरण समान है, बिरता बंचै कोई
कहै कबीर रघुनाथ सूं, मति रे मंगावे मोहि 395
मानि महतम प्रेम-रस गरवातण गुण नेह
सबहीं अहला गया, जबही कह्या कुछ देह 396
संत बांधै गाठड़ी, पेट समाता-तेइ
साईं सूं सनमुख रहै, जहाँ माँगे तहां देइ 397
कबीर संसा कोउ नहीं, हरि सूं लाग्गा हेत
काम-क्रोध सूं झूझणा, चौडै मांड्या खेत 398
कबीर सोई सूरिमा, मन सूँ मांडै झूझ
पंच पयादा पाड़ि ले, दूरि करै सब दूज 399
जिस मरनै यैं जग डरै, सो मेरे आनन्द
कब मरिहूँ कब देखिहूँ पूरन परमानंद 400

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